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Showing posts from September, 2011

From School to Masjid

स्कूल से मस्जिद तक मै हिन्दू हूँ और जैसा की हम जानते है कि हमारा पूजा स्थान मंदिर होता है | मेरे घर से थोड़ी दूर पर एक मस्जिद था वहा एक हाफीजी कुछ लोगों को उर्दू भी पढ़ाते मेरे चाचा चाहते थे कि मै उर्दू सीखू फिर क्या था हाफीजी से बात कि और हाफीजी ने मुझे मस्जिद आने को कहा | मै हिन्दू था इसलिए मुझे बाहर बैठकर पढना पड़ता था बाकि सभी लोग मस्जिद के अंदर पढ़ते थे | उस समय एक महीने कि फीस सिर्फ एक रूपये ही थी | मै सिर्फ गर्मी कि छुट्टी में ही मस्जिद जाता था उर्दू padhne पर ज्यादा रूचि न होने के कारन सिर्फ एक महीने के लिए ही गया परन्तु चाचाजी पीछे पड़े हुए थे उर्दू सिखाने के लिए | हमारे घर के पीछे एक साधू महाराज रहते थे वो भी थोड़ी थोड़ी उर्दू जानते थे तो चाचजी मुझे वही भेजने लगे | साधू महाराज मुझे कभी कभी चाय बना के भी पिलाते थे पर वो देख रहे थे कि मुझे ज्यादा रूचि नहीं है तो वो भी टाइम पास के लिए बुलाते थे किस्से कहानी सुना करके वापस कर देते थे | फिर कुछ दिन बाद चुटी ख़त्म उर्दू कि पढाई ख़त्म | पर आने जाने में मुझे उर्दू अक्षर याद हो गए जो इस तरह से है अलिफ ब

Rammu ki karastani ka phal

रम्मू की करास्तानी का फल एक लड़का था उसका नाम रम्मू था वो बहुत गरीब था पर थोडा हरामी किस्म का इंसान था जिस घर में लड़की देखा बस लाइन मारना सुरु कर देता था | उसके इस हरकत से आसपास वाले बहुत परेशान थे क्योंकि ने बहु बेटी की चिंता था गाँव था सभी इज्जतदार लोग थे रम्मू सरीर से हट्टा खट्टा था कोई उससे लड़ना भी नहीं चाहता या यों कहले लड़ भी नहीं सकता था | देखते देखते न जाने चुपके चुपके उसने कितनी लड़कियों की इज्जत का फलूदा कर दिया | ऐसा इसलिए हुआ क्यों की रम्मू लड़कियों को पटाने में माहिर था | किस्मत अच्छी थी रम्मू की इतना सब कुछ होने के बाद भी कभी किसी के फंदे में नहीं आया | दूर एक गाँव था जहाँ एक दबंग ठाकुर रहते थे उनकी एक लड़की थी जिसका नाम बिंदिया था | बिंदिया बुहुत चुलबुली थे एक दिन पुल्लो की नजर उस पर पद गई फिर क्या था लग गया उसके पीछे और धीरे धीर बिंदिया उससे सेट भी होने लगी | एक दिन घर में बिंदिया अकेले थी और पुल्लो मौका देख के घुस गया बिंदिया से छेड़खानी करने लगा पहले तो बिंदिया ने काफी विरोध किया पर फिर उसके चुगल में फंसने लगे तभी दरवाजे पर दस्तक हुई

luka chhupi

लुका छुपी बचपन में हम लुका छुपी का खेल बहुत खेलते थे | मै अपने चाचा जी से बहुत डरता था क्यों की जब भी वो हमें खेलते हुए देखते तो डांट लगा देते थे. एक दिन  हमें खेलते खेलते बहुत देर हो गई तो मै डर गया कहीं चाचा जी देख लेंगे तो मारेंगे | मै डर कर अपने कमरे के पास रखे एक बड़ी लकड़ी के ढेर के पीछे चुप गया | साम हो गई थी मैंने सोचा कि थोड़ी देर में चाचा जी चले जायेंगे तो बाहर आ जाऊंगा लेकिन इंतजार करते करते मुझे नींद आ गई | थोड़ी देर हुई मेरी नींद और गहरी हो गई | माँ मुझे खाना खाने के लिए आवाज दे रही थे मै नहीं मिला तो खोजना सुरु किया अडोस पड़ोस में पूछा पर मै नहीं मिला माँ कि परेशानी बढ़ने लगी फिर चाचा जी से पूछा तो उन्होंने कहा मैंने तो साम से उसे देखा तक नहीं ये सुन के माँ कि परेशानी और बढ़ गई | फिर घर के सभी सदस्य मुझे खोजने में लग गए धीरे धीरे बात गाँव तक फैल गई तो गाँव वाले भी मुझे खेतो में , घरो में , औरे मैदानों में खोजने लगे कुछ लोग तो मेरे कमरे तक भी आ गए पर लकड़ी के गट्ठर के पीछे किसी कि नजर नहीं गई आखिर मै लुका छुपी का एक्सपर्ट खिलाडी था ना. उधर माँ मुझे ख

aasheen ka vaada

आसीन का वादा आसीन जो की मेरे बाबा का दोस्त था | बात बहुत पुरानी है जब आसीन और मेरे बाबा साथ साथ भैंशो को घास चराने के लिए ले जाया करते थे | हमारे गाँव से कुछ दूरी कशाई घर था जहाँ पर भैंशो ko काटा जाता था मेरे बाबा भैंशो को बेचना चाहते थे क्यों की अब उनमे ज्यादा ताकत नही थी उन्हें पालने के लिए परन्तु उन्हें डर था की कहीं कोई कशाई उन्हें न खरीद ले | आशीन भी मुस्लमान था उसे भंसे खरीदने थे तो एक दिन उसने बाबा से बोला मुघे अपने भैंसे बेच दो पर आसीन मुस्लमान था इसलिए थोडा उन्हें डर लगा पर भरोषा करने के लिए बाबा ने बोला अगर तुम वादा करो की भविष्य में कभी kishi कशाई को मेरा भैंसा नाही बेचोगे तो ही मै तुम्हे बेच सकता हूँ | आशीन ने थोडा सोचकर वादा कर लिया तो बाबा ने उसे भैंसा बेच दिया उसे सिर्फ एक भैंसा चाहिए था इसलिए एक ही बेचा. मेरे बाबा ko सक था पर फिर भी दोस्त पर यकीन करना ठीक समझा .   5 वर्ष बीत gaye एक दिन आशीन aaya man थोडा udash dekh कर बाबा ने poocha kya hua आशीन बोला बाबा भैसा nahi रहा बहुत दिनों से बीमार था और मै aapko batane aaya हूँ क

I like to sit near Ocean at Mumbai

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