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Byapaar ka mukhauta

ब्यापार का मुखौटा  हमने सिरमौर जिन्हें बनाया था  बनाके सूरमा सीने में बसाया था  विभूषित किया था अनगिनत उपाधियों से  पुरस्कृत किया था अर्जुन पुरस्कारों से  प्रतिस्था के सोपान पर जिन्हें बिठाया था  हाथों में जिनके तिरंगा मुस्कराया था  अपार जनता से था जिनका अस्तित्व जगमगाहट  तानकर करतल ध्वनी करती थी जिनका स्वागत  तालियों से होता था अभिनन्दन अनुनाद गडगडाहट  हमारे हिरदय कुसुम हमारे भास्कर ध्रुव तारे थे  जब वो विजयी हो दिवाली पोंगल मानते थे  उनकी जीत अपनी जीत माना था  पराजय में भी सान्तवना प्रेरणा का स्वर उभरता  था  जिस पैसे से मिल सकती थी रोटी मिट सकती थी भूंख  उन खिलाडियों के दर्शनार्थ टिकट ख़रीदा था  आह क्या खेल खेला हमारे  उनका खेल अब हमारे मन पर है एक कुठाराघात  आह क्या खेल खेला हमारे  उनका खेल अब हमारे मन पर है एक कुठाराघात  जहाँ जीत थी वहां हरे नपुंशक बनकर  अपनी जीत का सौदा किया हमें हार  देकर  इमान बेचीं अपनी हमारी भावनाओं का सौदा किया  झोली भरली अपनी सोने से कैसा विस्वासघात किया  उनका खेल महज एक दिखावा है  देश के नाम पर कलंक ,