ये आग कब बुझेगी ? आप सोच रहे होंगे मई कौन से आग की बात कर रहा हूँ ! में अपने और आप के अन्दर के आग की बात कर रहा हूँ! हमारे अंदर कितनी आग है जिसे हम नहीं जानते फिर भी वो है. एक आग है कम वासना की जो की प्रकिर्तिक है और रहेगी ! संसार चल रहा है इस आग से! दूसरी आग है नसे की जो की सभी में किसी न किसी रूप में होती है ! कोई चाय तो कोई कोफ़ी कोई सिगरेट तो कोई सरब कोई कम तो कोई ज्यादा यह सब ऐसी आग बन चुके है जो कभी नहीं बुझ सकते हमेशा रहेंगे और इससे हमारा ही नुकसान होना है और हम कर के रहेंगे. मुझे इन आगो से सिकायत नहीं है क्यों की इससे हमर ही नुकसान होता है किसी और का नहीं ? मुझे सिकायत है इसके आलावा एक और आग से जो की बहुत ज्यादा फैल चूका है! वो है मांसाहार की आग. और ए आग कब बुझेगी ? किसी ज़माने में फसल नहीं होती थी तो इंसान मांस खा के कम चला लेता था फिर इंसानों ने अपना रहन सहन बदला शिक्षा में विकास किया भाषा में बदलाव किया रीती रिवाज बदले ? फिर भी नहीं बदला तो मांसाहार हम कल भी खाते थे आज भी खाते हैं. अरे अब तो इन पशुओं को अपनी लाइफ जीने दो इन्हें भी जीने का हक़ है . भगवन की नजर...
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