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Byapaar ka mukhauta

ब्यापार का मुखौटा  हमने सिरमौर जिन्हें बनाया था  बनाके सूरमा सीने में बसाया था  विभूषित किया था अनगिनत उपाधियों से  पुरस्कृत किया था अर्जुन पुरस्कारों से  प्रतिस्था के सोपान पर जिन्हें बिठाया था  हाथों में जिनके तिरंगा मुस्कराया था  अपार जनता से था जिनका अस्तित्व जगमगाहट  तानकर करतल ध्वनी करती थी जिनका स्वागत  तालियों से होता था अभिनन्दन अनुनाद गडगडाहट  हमारे हिरदय कुसुम हमारे भास्कर ध्रुव तारे थे  जब वो विजयी हो दिवाली पोंगल मानते थे  उनकी जीत अपनी जीत माना था  पराजय में भी सान्तवना प्रेरणा का स्वर उभरता  था  जिस पैसे से मिल सकती थी रोटी मिट सकती थी भूंख  उन खिलाडियों के दर्शनार्थ टिकट ख़रीदा था  आह क्या खेल खेला हमारे  उनका खेल अब हमारे मन पर है एक कुठाराघात  आह क्या खेल खेला हमारे  उनका खेल अब हमारे मन पर है एक कुठाराघात  जहाँ जीत थी वहां हरे नपुंशक बनकर  अपनी जीत का सौदा किया हमें हार  देकर  इमान बेचीं अपनी हमा...

The line of construction and destruction

The line of construction and destruction  हम घरों में हो तो जैसे भूकंप आये  ट्रेन में हो तो कहीं बम न फूट जाये  विमान में हों तो कब धमाका हो जाये  कहीं क्रिया कलाप में कुछ मिस न हो जाये  स्पर्श के रोमांस में कहीं जनाजा ही न निकल जाये आलिंगन में ही कहीं हो न जाये हम ध्वस्त  बीबी ही न हो कहीं आत्मघाती दस्ते की सदस्य  हर वक्त एक खतरा बना रहता है  निर्माण में जैसे विनाश छुपा रहता है निर्माण विनाश की रेखा कितनी पतली हो गई है फिजा बन चुकी है की हम सहमे फूलों से  तूफानी झंझावात का अंदेशा हो शीतल झोकों से  हंसी हो गई दानवी अट्टहास  मुस्कान विषैली सी  संगीत भोंडा राग बेसुरे  सब्नम बन चुकी एक बूँद आग की  अमृत में विष जीवन में मृतु  साम्यावस्था से है हम परे  सर्वत्र घृणा अवसाद आतंक के खतरों से है हम घिरे  पाप कोई करे पर सभ्यता निर्दोष बच्चे मानवता मरे  अडिग धरती लगती एक बारूद का ढेर  छाया मौत का सन्नाटा  घरों इमारतो भब्य महलों में फैला एक मौत का साया...