मेरी तुकबंदी या खुदा ऐसा क्यों होता है जिससे हम दिल लगाते है वह मिलती नहीं और जो मिलती है उससे कभी दिल ही नहीं लगता जिंदगी एक दर्दे साम है इंसा जो दिल का गुलाम है | उसकी बातों ने दिल को कुरेद दिया , उसके दिल से निकले तीर ने दिल को भेद दिया | खुदा भी वही राम भी वही, हिन्दू भी वही मुस्लिम भी वही, सिख भी वही , ईसाई भी वही | तो फिर मजहब के नाम पर लड़ना झगड़ना है दिमाग की दही | चाहे ठंडी हो , बरसात हो या धुप ,मोहब्बत में मजा है भरपूर | फिर भी जिंदगी खफा रहती है उनसे जो तमाशाई सराब से इश्क करते है | जुबान तो मोहब्बत बोलती है पर दिल नफरत से गुजरता है | बोतल में इश्क का भूत दीखता है |
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