होली तो सभी खेलते है अपने अपने तरीके से पर मुझे अपने गाँव की होली अच्छी लगती है | मेरा घर ५ गावों के बीच में है और होली के दिन सभी गावों की टोलियाँ एक एक करके आती है कभी कभी तो हम सब नहा चुके होतें है तो उसके बाद कोई टोली आ जाती है और फिर से नहाना पड़ता है |
टोली की खासियत यह होती है कि उसमे नाचने और गाने के लिए स्पेशल ढोल नगाड़े होते है टोली हर घर से गुजरते हुए जाती है और लम्बी होती जाती है कभी कभी तो नवाब भी तैयार किये जाते थे जिनको सरब पिला के भैंस पर बिठा दिया जाता था और पूरे गाँव में घुमाया जाता था |
एक ही चीज ख़राब होती है कि बहुत से लोग सराब या भंग के नसे में धुत रहते है और अजब गजब हरकते करते है | पहले सब रंग खेलते है और डांस करते है जो नशे में रहते है वे एक दुसरे के कपडे फाड़ देतें है तो किसी कि मौसी या मामा का मूड ख़राब होता है तो सबको गोबर के पानी से ही नहला देतें है |
होलिका दहन रात को कोटा है पर होलिका दहन के बाद किसी के खेत से खर तो किसी के खेत से पूरा पेड़ ही गायब हो जाता है | मेरे घर में गुजियाँ और पूरियां बनती है दोपहर के बाद होली मिलन सुरु हो जाता है साम तक कम से कम हजारों लोग मिल के जा चुके होते है गुजिया ख़तम हो जाने के बाद चाय और नास्ता से ही काम चलाना पड़ता है |
आज हम सहर में रहते है और अगर होली में घर नहीं जाते है तो बहुत याद आती है |
मेरी तरफ से आप सभी को होली कि सुभ कामनाएं |