दस पैसे
मेरे घर के पीछे एक गरीब परिवार रहता था । उसके मालिक का नाम बुधई था जो कि अब इस दुनिया में नहीं है । बुधई के ३ बेटे और दो बेटी थी । एक बेटी का नाम अमृता था । हमारे गाव में हर साल एक मेला लगता था । उस बार भी मेला लगा । अमृता पैसे मांगने लगी पर बुधई के पास सिर्फ दस पैसे ही थे । बुधई ने अमृता को दस पैसे दे दिए ।
अमृता मेला घूमने लगी एक दुकान पे समोसा था उसने दस पैसे देकर कहा समोसा दे दो दुकानदार ने कहा एक समोसा पचास पैसे का है । यह सुनकर अमृता आगे बढ़ गई । दूसरी दुकान पर नमकीन माँगा तो दुकानदार ने बहुत थोडा सा नमकीन दिया अमृता बोली बस इतना सा। अरे मेरा पैसा वापस कर दो इतना थोडा सा नहीं चाहिए ।
ऐसे ही थोड़ी देर चलता रहा अमृता ने दस पैसे में पूरे मेले का मजा लिया फिर भी दस पैसा अभी ज्यों का त्यों ही था । एक गरीब इंसान दस पैसे के मूल्य को भी समझता है और कम से भी आनंद ले सकता है ।
ऐसे ही चलते चलते एक दुकानदार ने दस पैसे में नमकीन थोड़ी ज्यादा दे दी तो अमृता ने ले लिया और दस पैसे भी खर्च हो गए । आज भी वो पल मुझे याद आता है तो मुस्कराहट निकल जाती है क्यों कि पूरे मेले में मई उसके साथ था और मेरे पास भी पैसा नहीं था तो सोचा चलो दस पैसे का मजा भी देख लेंगे और मेला भी घूम लेंगे ।
मेरे गाव में मेला आज भी लगता है पर वो बात नहीं है आज महंगाई है ,पैसे देकर भी आनंद नहीं होता क्यों कि अब तो जहाँ जहाँ नजर जाती है रोज मेला ही देखने को मिलता है । जिंदगी एक भागदौड़ भरी और मेला आता है जाता है ।
मेरे घर के पीछे एक गरीब परिवार रहता था । उसके मालिक का नाम बुधई था जो कि अब इस दुनिया में नहीं है । बुधई के ३ बेटे और दो बेटी थी । एक बेटी का नाम अमृता था । हमारे गाव में हर साल एक मेला लगता था । उस बार भी मेला लगा । अमृता पैसे मांगने लगी पर बुधई के पास सिर्फ दस पैसे ही थे । बुधई ने अमृता को दस पैसे दे दिए ।
अमृता मेला घूमने लगी एक दुकान पे समोसा था उसने दस पैसे देकर कहा समोसा दे दो दुकानदार ने कहा एक समोसा पचास पैसे का है । यह सुनकर अमृता आगे बढ़ गई । दूसरी दुकान पर नमकीन माँगा तो दुकानदार ने बहुत थोडा सा नमकीन दिया अमृता बोली बस इतना सा। अरे मेरा पैसा वापस कर दो इतना थोडा सा नहीं चाहिए ।
ऐसे ही थोड़ी देर चलता रहा अमृता ने दस पैसे में पूरे मेले का मजा लिया फिर भी दस पैसा अभी ज्यों का त्यों ही था । एक गरीब इंसान दस पैसे के मूल्य को भी समझता है और कम से भी आनंद ले सकता है ।
ऐसे ही चलते चलते एक दुकानदार ने दस पैसे में नमकीन थोड़ी ज्यादा दे दी तो अमृता ने ले लिया और दस पैसे भी खर्च हो गए । आज भी वो पल मुझे याद आता है तो मुस्कराहट निकल जाती है क्यों कि पूरे मेले में मई उसके साथ था और मेरे पास भी पैसा नहीं था तो सोचा चलो दस पैसे का मजा भी देख लेंगे और मेला भी घूम लेंगे ।
मेरे गाव में मेला आज भी लगता है पर वो बात नहीं है आज महंगाई है ,पैसे देकर भी आनंद नहीं होता क्यों कि अब तो जहाँ जहाँ नजर जाती है रोज मेला ही देखने को मिलता है । जिंदगी एक भागदौड़ भरी और मेला आता है जाता है ।