मशीनीकरण का प्रभाव
मशीनीकरण एक ऐसा नाम है जिसने बहुत सारे काम आसान कर दिया | सब मशीनो के बारे में लिखना तो संभव ही नहीं है लेकिन कुछ मशीनों के बारे में विचार जरूर किया जा सकता है |
मेरे गांव की ही बात करता हूँ जब मै छोटा था तब खेतो में मजदूरों के लिए खाना ले जाया करता था मजदूर भैंसो की मदद से खेतों की जुताई किया करते थे पुरे दिन जुताई होती थी तब जाके कहीं १ या २ बीघा जुताई हो पाती थी |
वही काम आज ट्रेक्टर ने ले लिया है दिन का काम कुछ मिनटों का हो गया | समय का फायदा हमें तो हुआ पर घाटा किसे हुआ उन भैंसो का | उनका तो काम ही ख़त्म हो गया जब काम ख़त्म हो गया तो उनका इस दुनिया में क्या काम है |
लेकिन एक काम तो मिल गया इन भैंसो को कैसे कम किया जाये | भैंसो को कम करने का एक ही रास्ता था इनका मांस एक्सपोर्ट कर दो दूसरे देशों में लेकिन प्रश्न ये था की इतनी जल्दी इन्हे काटा कैसे जाये | यह भी काम मनुष्यों ने आसान कर दिया एक और मशीनीकरण |
फैक्ट्री खोल दो एक दिन में हजारों भैंसे निकल जायेंगे | भैंस तो केवल एक उदाहरण है ऐसे ही न जाने कितने सारे जानवर इन मशीनों की चपेट में आ रहे है |
सुबह सुबह जब हम सो कर उठते है तो गुड मॉर्निंग बोलते है कितनी हसीन लगती है ये सुबह लेकिन अगर थोड़ा सोचे तो इसी सुबह में बहुत सारे जानवर सुला दिए जाते है | हम मंदिर जाते है गाय को चारा दान करते है लेकिन जरुरी नहीं अगले दिन वो गाय चारा खाने के लिए फिर से मिले |
एक तरफ शृद्धा सुमन दूसरी तरफ इतनी ज्यादा हैवानियत समझ नहीं आता की कैसी है ये दुनिया | हम खुद को जिन्दा रखने के लिए काम तलाश कर लेते है लेकिन जानवरो को काम से बेदखल कर उन्हें मौत के मुँह में झोंक देते है |
मशीनीकरण जितना बढ़ता जायेगा जानवर तो क्या धीरे धीरे इंसान का भी महत्त्व ख़त्म हो जायेगा तो क्या इंसानो की भी बोली लगनी शुरू हो जाएगी |
इंसान जब नसेड़ी हो जाता है तो छोटे से बड़े नशे की ओर बढ़ता है धीरे धीरे नशे में अपना जीवन ख़त्म कर लेता है इसी तरह मांसाहार एक नशा है जो स्टार्ट तो अंडे से होता है लेकिन ख़त्म होने की कोई सीमा नहीं है चिकेन ,मटन ,बीफ और कुछ हद तक खुद इंसान ही इंसान को खाने लगेगा |
वही शायद इस कलयुग का अंत होगा | कहीं कहीं सरकार ने गाय खाने में रोक लगा दी है अगर सरकार ने रोक लगाई है तो कहीं न कहीं सोचा होगा की गाय काटना गलत है तभी तो रोक लगाई है | मांसाहार अच्छा है या बुरा अगर आप थोड़ा सा दिल से सोचेंगे तो जबाब तुरंत मिल जायेगा की किसी भी तरह की हत्या में सहभागी होना गलत है | जब गाय की हत्या करना गलत है तो बाकी जानवर कागज के तो बने नहीं है दर्द सबको होता है सभी जानवरों को काटने पर रोक लगनी चाहिए |
जो इंसान सेल्फिश नहीं होता वो ही मांसाहार को गलत मानेगा बाकी सही मानेंगे | मेरा एक दोस्त था उसने एक बार भैंस काटते हुए देख लिए तो उसे १० दिन तक बुखार ही आता रहा आखिर ऐसा क्यों हुआ क्यों की उसके मन और दिल ने आक्सेप्ट नहीं किया कि यह सही है |
जो कटाई कल हाथों से काम मात्रा में होती थी आज वही मशीनों से बड़ी मात्रा में होती है | मशीनो का काम जब अनाज पाने तक सीमित रहता है तब तक सही रहता है लेकिन मशीनों का दुरूपयोग हमें पाप का भागिदार बनता है |
यही मशीनीकरण का प्रभाव है |
मशीनीकरण एक ऐसा नाम है जिसने बहुत सारे काम आसान कर दिया | सब मशीनो के बारे में लिखना तो संभव ही नहीं है लेकिन कुछ मशीनों के बारे में विचार जरूर किया जा सकता है |
मेरे गांव की ही बात करता हूँ जब मै छोटा था तब खेतो में मजदूरों के लिए खाना ले जाया करता था मजदूर भैंसो की मदद से खेतों की जुताई किया करते थे पुरे दिन जुताई होती थी तब जाके कहीं १ या २ बीघा जुताई हो पाती थी |
वही काम आज ट्रेक्टर ने ले लिया है दिन का काम कुछ मिनटों का हो गया | समय का फायदा हमें तो हुआ पर घाटा किसे हुआ उन भैंसो का | उनका तो काम ही ख़त्म हो गया जब काम ख़त्म हो गया तो उनका इस दुनिया में क्या काम है |
लेकिन एक काम तो मिल गया इन भैंसो को कैसे कम किया जाये | भैंसो को कम करने का एक ही रास्ता था इनका मांस एक्सपोर्ट कर दो दूसरे देशों में लेकिन प्रश्न ये था की इतनी जल्दी इन्हे काटा कैसे जाये | यह भी काम मनुष्यों ने आसान कर दिया एक और मशीनीकरण |
फैक्ट्री खोल दो एक दिन में हजारों भैंसे निकल जायेंगे | भैंस तो केवल एक उदाहरण है ऐसे ही न जाने कितने सारे जानवर इन मशीनों की चपेट में आ रहे है |
सुबह सुबह जब हम सो कर उठते है तो गुड मॉर्निंग बोलते है कितनी हसीन लगती है ये सुबह लेकिन अगर थोड़ा सोचे तो इसी सुबह में बहुत सारे जानवर सुला दिए जाते है | हम मंदिर जाते है गाय को चारा दान करते है लेकिन जरुरी नहीं अगले दिन वो गाय चारा खाने के लिए फिर से मिले |
एक तरफ शृद्धा सुमन दूसरी तरफ इतनी ज्यादा हैवानियत समझ नहीं आता की कैसी है ये दुनिया | हम खुद को जिन्दा रखने के लिए काम तलाश कर लेते है लेकिन जानवरो को काम से बेदखल कर उन्हें मौत के मुँह में झोंक देते है |
मशीनीकरण जितना बढ़ता जायेगा जानवर तो क्या धीरे धीरे इंसान का भी महत्त्व ख़त्म हो जायेगा तो क्या इंसानो की भी बोली लगनी शुरू हो जाएगी |
इंसान जब नसेड़ी हो जाता है तो छोटे से बड़े नशे की ओर बढ़ता है धीरे धीरे नशे में अपना जीवन ख़त्म कर लेता है इसी तरह मांसाहार एक नशा है जो स्टार्ट तो अंडे से होता है लेकिन ख़त्म होने की कोई सीमा नहीं है चिकेन ,मटन ,बीफ और कुछ हद तक खुद इंसान ही इंसान को खाने लगेगा |
वही शायद इस कलयुग का अंत होगा | कहीं कहीं सरकार ने गाय खाने में रोक लगा दी है अगर सरकार ने रोक लगाई है तो कहीं न कहीं सोचा होगा की गाय काटना गलत है तभी तो रोक लगाई है | मांसाहार अच्छा है या बुरा अगर आप थोड़ा सा दिल से सोचेंगे तो जबाब तुरंत मिल जायेगा की किसी भी तरह की हत्या में सहभागी होना गलत है | जब गाय की हत्या करना गलत है तो बाकी जानवर कागज के तो बने नहीं है दर्द सबको होता है सभी जानवरों को काटने पर रोक लगनी चाहिए |
जो इंसान सेल्फिश नहीं होता वो ही मांसाहार को गलत मानेगा बाकी सही मानेंगे | मेरा एक दोस्त था उसने एक बार भैंस काटते हुए देख लिए तो उसे १० दिन तक बुखार ही आता रहा आखिर ऐसा क्यों हुआ क्यों की उसके मन और दिल ने आक्सेप्ट नहीं किया कि यह सही है |
जो कटाई कल हाथों से काम मात्रा में होती थी आज वही मशीनों से बड़ी मात्रा में होती है | मशीनो का काम जब अनाज पाने तक सीमित रहता है तब तक सही रहता है लेकिन मशीनों का दुरूपयोग हमें पाप का भागिदार बनता है |
यही मशीनीकरण का प्रभाव है |