साका और मासा का विवाद
साका और मासा दो भाई थे दोनों को बहस करने की आदत थी उनका एक बहस को में लिखना चाहता हूँ
साका : मै तो साकाहार पसंद करता हूँ और मांस का सेवन नहीं करता हूँ यही मेरे लिए अच्छा है.
मासा : अरे मै तो मांसाहार पसंद करता हूँ इससे ज्यादा ताकत आती है | वाह क्या स्वाद होता है चिकेन और मटन में.
साका : अरे मांस से कोई ताकत वाकत नहीं बढती है सब्जी खाने से भी ताकत आती है .किसी की जान लेकर खाने में क्या रखा है.
मासा : अगर सब सब्जी ही खायेंगे तो सोचो सब्जी कितनी महँगी हो जाएगी और बकरे और मुर्गे कितने ज्यादा हो जायेंगे फिर उनके खाने का इंतजाम कौन करेगा.
साका : भगवन बहुत बड़ा है हमसे ज्यादा उसको चिंता है इन सबकी वो सब कुछ ठीक करता है क्या तुमसे इश्वर ने कहा है की जान मारना अच्छा है.
मासा : यह सब प्रकृति को संतुलित करने के लिए है .
साका : तो खुद कोई इश्वर जैसे राम श्याम इत्यादि इसका सेवन क्यों क्यों नहीं करते थे.
मासा : इस बारे में कोई नहीं बता सकता की कौन मांस सेवन करता था कौन नहीं अरे टेंसन क्यों लेता है खाओ पियो और मौज करो.
साका: सोचना पड़ता है भाई अगर तुग्हे चिंता नहीं तो मुझे चिंता करने से क्यों रोकता है क्यों की तू मुझे अपने जैसा बनाना चाहता है और डरता है तू की कहीं तू गलत तो नहीं है.
अगर सभी मांस खायेंगे तो सब एक जैसे कहलाएँगे और सबको मांस खाना सही ही लगेगा.
और कबीर दास जी ने भी कहा है
कहता हूँ कही जात हूँ, कहा सु मान हमार
जाका गला तुम काटिहो, सो फिर काटि तुमार
बकरी पाती खात है ताकी काढी खाल
जो नर बकरी खात है ताको कौन हवाल
ए सारे दोहे क्या कबीर दास जी ने सिर्फ पड़ने के लिए लिखे अच्छा होगा हम आज से सुधर जाएँ.
मासा : दोस्त ऐसे तो हर पेड़ पौधों में भी जान होती है हत्या तो उनकी भी होती है तो क्या हम खाना खाना छोड़ दे
साका : नहीं हम जीने के लिए कुछ न कुछ तो खाना ही पड़ेगा मानता हूँ की पेड़ पौधों में भी जान होती है पर हमारा दिल फिर भी इनके बीज से बने भोजन को खाने की गवाही देता है दूध पीने से भैंस मर नहीं जाती पर मांस खाने के लिए भैंस को मारना पड़ता है भाई.