हिशाब किताब भाग दो
जब मै छोटा बच्चा था तो बिलकुल ही नासमझ था बड़े जो कहते वो ही मान लेता था | एक बार मेरे भाई बाजार से कुछ चीज ले कर के आये मैंने पुछा क्या है इसमें तो उन्होंने बताया की बकरे का मांस | मैंने कहा ये क्यों लाये बोले खाने के लिए | मैंने कहा जिन्दा बकरे का है या मरे हुए तो उन्होंने कहा जिन्दे को मार कर बनता है | मैंने तब जाना की मांस भी खाने की चीज होती है वो भी जिन्दा को काट कर |
शाम हुई बकरे का मांस बन कर तैयार हुआ मुझे भी खिलाया मुझे बहुत ही पसंद आया | फिर तो हर महीने में एक बार तो खाता ही था.| एक बार मेरे गाँव में एक जन के घर पे शादी थी वहां बकरा काटने वाले थे लोग |
मै भी देखने के लिए पहुँच गया | मैंने देखा एक आदमी दो बकरों को लेकर आया और एक के बाद दूसरे को काट दिया | मैंने देखा तो सही पर मैंने महसूस किया की मेरा पूरा खून गरम हो चुका था | आँखों में क्रोध की ज्वाला अपने आप झलक रही थी |
फिर मुझे याद आया कुछ दी मैंने जिस चीज को खाया था ये ऐसे ही काटा जाता है | फिर मैंने निर्णय लिया की अब मै मांस खाना छोड़ दूंगा | नहीं तो हो सकता है इसका बदला मुझे कहीं न कहीं तो भरना ही पड़ेगा |
हिशाब किताब तो हर चीज का होता है उसके दरबार में (ऊपर वाले के) | पर ये सब छोड़ना उतना आसान न था | उसके बाद जब भी मांस बनता तो मेरे मन में खाने का लालच आने लगता था और में खाना सुरु कर देता था |
पर दिल कहीं न कही से खाने की गवाही नहीं दे रहा था | मै सोचता अगर यह खाना सही होता तो हर धार्मिक ग्रन्थ कहानी और जगह जगह पर इसे खाने पर जोर दिया गया होता पर मांस खाने का उलेख कहीं नहीं मिलता | दिन गुजरते गए मेरे मन में एक ही सवाल क्या मांस खाना सही है | क्या इसका कोई हिसाब किताब होता है या नहीं |
अगर आप भी जानना चाहते है इसके बारे में तो इन्तजार करें हिसाब किताब भाग तीन का |