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Dard E Tanhai

तन्हाई मुझे लगता है की मेरे पास कोई है जो हमेशा तो नहीं पर अकेले में मिलती है | यह और कोई नहीं मेरी तन्हाई है ,मेरा हमदम दोस्त नहीं जनता मै कौन है | पर ये तन्हाई करमजली मेरी सारी दास्ताँ बयां करती है | तन्हाई मुझसे कहती है ये करलूं वो करलूं कभी ख़ुशी के पल तो कभी आंसू भर लूं | मेरी तन्हाई मुझे रोज सताती है , न चाहते हुए भी होने का अहसाश कराती है | कभी बिस्तर पर तो कभी कंप्यूटर स्क्रीन पर भी नजर आती है | कभी कभी तो भीड़ भाड़ में भी नजर आती है | लाख कोसिस की कि दूर हो जाये मेरी तन्हाई | पर जितना दूर करता हूँ उतने करीब हो जाती है तन्हाई | एक दिन मेरी तन्हाई से हो गया मेरा समझौता | तन्हाई ने कहा मेरे यार लगता है तुम हो मुझसे बहुत दुखी | तुम्हे तुम्हारी तन्हाई का वास्ता बताती हूँ एक रास्ता | तन्हाई के कहने पर मैंने कुछ ही दिनों में करली शादी | मैंने तन्हाई का अदा किया सुक्रिया कि उसने मुझे नै राह दी | कुछ दिन तो बहुत अच्छा लगा बिना तन्हाई के | अभी तक कानो में गूँज रहे थे सुर सहनाई के | सब कुछ मानो स्वर्ग सा मिल गया | होठों में मुस्कराहट दिलों में फूल खिल गया | पर ...

Unemployment

बेरोजगारी मेरी चाह है येही की मेरी कविता में दम हो , थोड़ी ख़ुशी ,थोड़ी हंसी और मरहमी गम हो | बात है उनकी जिन्हें है किसी की तलास , करते है कोसिस नहीं छोड़ते आश | भरतें है आवेदन देतें है इन्तहान लेकर एक आशा , फिर आता है परिणाम हाथ आती है निराशा | बड़े देते है अस्वासन कि बेटे हिम्मत मत हार , कोसिस कर बार बार | यूँ तो ढांढस बढ़|ने का सिलसिला चलता ही रहता है , सबकुछ हो गया ख़त्म मै हो गया पूरी तरह से बेरोजगार अंत में ऐसा लगता है | फिर एक दिन पुस्तकालय में जा कर दो लाइन पढता हूँ जो कि मै आपको अपने सब्दो में बयां करता हूँ | "गर न मिले नौकरी तू फिर भी बन बन्दा , छोड़ दे ये नौकरियां कर ले कोई धंधा " पुस्तकालय से बहार निकला तो एक भिखारी कटोरा लिए खड़ा था | पीछा छुड़ाने के लिए मैंने उससे कहा जाओ बाबा छुट्टे नहीं है , बाबा बोले बेटा दस रूपये दान कर दो तो छुट्टे मिल जायेंगे | मै बोला दस तुझे दूंगा तो मै क्या करूँगा , ९० रूपये में तो ९ दिन कट जायेंगे १० वे दिन क्या करूँगा | बाबा बोले बेटे तेरा तो बुरा हाल है बेरोजगारी कि तू एक बड़ी मिसाल है | मुझे आई थोड़ी सरम दिमाग हो गया गरम ,...

Imagine of Soul

आत्मा अगर एक पल के लिए हम यह सोचे की परमात्मा है ही नहीं | इस्वरीय दुनिया का कोई जगत है ही नहीं तो वैज्ञानिक दृष्टी से आत्मा कुछ भी नहीं है | शरीर के अन्दर आत्मा न होकर एक ऐसी उर्जा होती है जो उसने भ्रूणावस्था में प्राप्त की होती है | वह उर्जा सुक्राणु और अंडाणु के मिलन पर ही बनती है और अवस्था के पश्चात नस्त हो जाती है मतलब शरीर उर्जा विहीन हो जाता है अर्थात मर जाता है |  वास्तव में यदि आत्माएं होती तो यथार्थता भूत भी होते रोज बहुत लोग मरते और अबतक बहुत सारे भूत हो जाते और रोज एक दो भूतों से मुलाकात भी हो जाती | अगर हम इस्वरीय दुनिया में विस्वास करे तो बहुत सारी बातें ऐसी होंगी जिसे आपने केवल सुना होगा पर देखा नहीं होगा | इस्वरीय दुनिया एक काल्पनिक संसार है जो हो भी सकता है नहीं भी | परन्तु विज्ञानी संसार सर्वथा सिद्ध है |

Manjil or Target

मंजिल यदि आपकी मंजिल जिसकी इच्छा आपने की है वो यदि मिल जाये तो आप जीवन भर खुस रहेंगे यदि आपको अन्छित मंजिल की प्राप्ति हो जाये तो खुसी के बहुत कम पल ही मिलेंगे इसलिए इंसान को हर बाधा , माया , मोह , लोभ , आदि छोड़कर अपनी इच्छित मंजिल को प्राप्त करनी चाहिए यदि आप कामयाब हो गए और आपको आपकी मंजिल मिल गयी तो टूटे हुए बंधन, माया, मोह सभी ब्याज के साथ वापस मिल जायेंगे |

Notebook of a child

Two friends

दो दोस्त एक गाँव था नाम था हरिहरपुर वहां दो किसान रहते थे एक का नाम था हरिया और दुसरे का नाम रामलाल दोनों में गहरी दोस्ती थी और खेती में भी एक दुसरे की मदद किया करते थे पर दोनों गरीब बहुत थे | हरिया का एक बेटा था जो शहर में रहता था कभी कभी बेटे की चिठ्ठी आ जाती थी |  दिन गुजरता गया इस बार फसल अच्छी हुई गाँव में खुशहाली सी छा गई | हरिया ने अनाज की कुछ बोरिया बेटे को सहर भी भिजवा दिया | कुछ दिन बाद बेटे की चिठ्ठी आई उसमे उसने अनाज भेजने का सुक्रिया अदा किया था | गाँव के खेतों में नहर से पानी आता था नहर मुखिया के कब्जे में था जिसको पानी चाहिए होता था पैसे देकर पानी लेता था इस तरह मुखिया की कमाई भी हो जाती थी | एक साल और बीत गया | इस बार गाँव में सूखा पड़ गया नहर में भी बहुत कम पानी बचा था मुखिया ने पैसे बहुत बाधा दिए | हरिया और रामलाल के पास इतने पैसे न थे | फसल की सिचाई भी बाकी थी जो कुछ भी था दोनों ने मिलकर मुखिया को धन दिया पर धन कम होने के कारन आधे खेत ही सिचाई हो पाई | फिर क्या था बाकि खेत की सिचाई होनी जरूरी थी इसलिए दोनों ने फैसला किया की घर के कुवें से पानी ले जाकर सिच...

Holi of my village

मेरे गाँव की होली होली तो सभी खेलते है अपने अपने तरीके से पर मुझे अपने गाँव की होली अच्छी लगती है | मेरा घर ५ गावों के बीच में है और होली के दिन सभी गावों की टोलियाँ एक एक करके आती है कभी कभी तो हम सब नहा चुके होतें है तो उसके बाद कोई टोली आ जाती है और फिर से नहाना पड़ता है | टोली की खासियत यह होती है कि उसमे नाचने और गाने के लिए स्पेशल ढोल नगाड़े होते है टोली हर घर से गुजरते हुए जाती है और लम्बी होती जाती है कभी कभी तो नवाब भी तैयार किये जाते थे जिनको सरब पिला के भैंस पर बिठा दिया जाता था और पूरे गाँव में घुमाया जाता था | एक ही चीज ख़राब होती है कि बहुत से लोग सराब या भंग के नसे में धुत रहते है और अजब गजब हरकते करते है | पहले सब रंग खेलते है और डांस करते है जो नशे में रहते है वे एक दुसरे के कपडे फाड़ देतें है तो किसी कि मौसी या मामा का मूड ख़राब होता है तो सबको गोबर के पानी से ही नहला देतें है | होलिका दहन रात को कोटा है पर होलिका दहन के बाद किसी के खेत से खर तो किसी के खेत से पूरा पेड़ ही गायब हो जाता है | मेरे घर में गुजियाँ और पूरियां बनती है दोपहर के बाद होली मिलन सुरु...