बलि
बात बहुत पुरानी है पर सच है मै उस समय बहुत छोटा था हमारे घर से थोड़ी दूर पर एक मंदिर था जो अब भी है वो मंदिर दुर्गा जी का मंदिर है मै कभी कभी उस मंदी में जाया करता था वहा पर माता जी को खुश करने के लिए लोग भजन कीर्तन नाच और गाना किया करते थे | मै भी वहा जाकर आनंदित होता था | पर कुछ सिरफिरों का दिमाग फिर गया था और वो माता जी को खुश करने के लिए बलि के बारे में सोचा करते थे एक दिन उन्होंने एक बकरे का बलि देने का निश्चय किया | वो सब लोग हमारे घर से कुछ दुरी पर ही रहते थे |
मुझे इस सब के बारे में मालूम न था मै तो उस दिन भी नाच गाना समझकर मंदिर गया |
नाच गाना सुरु हो गया फिर थोड़ी देर बाद मंदिर में एक बकरा लाया गया बकरे को हल्दी के पानी से नहलाया गया फिर उसे दूध पिलाया गया मै अनजान सा बकरे को देख के आनंदित होता रहा की बकरे की अच्छी खातिरदारी हो रही है | एक घंटे तक नाच गाना और भजन कीर्तन चला फिर एक आदमी धारदार गडाषा लेकर आया दो लोगो ने बकरे को गिरा दिया फिर उस आदमी ने दो बार जोर से बकरे के गर्दन पर वार किया बकरा बहुत जोर से चिल्लाया और उसका काम तमाम कर दिया मै आखिरी दृश्य देख कर दहल चुका था और उसके बाद कभी मंदिर में नाच गाना देखने नहीं गया |
५ साल बाद वो आदमी मुझे मिला जिसने बलि दी थे मैंने उससे प्रश्न किया तुमने बलि क्यों दी तो उसने कहा माता को खुश करने के लिए | मैंने कहा माता खुश हो गई क्या वो बोला माता कहाँ खुश हुई ऊपर से दो दिन बाद मेरे घर में आग लग गई और सब कुछ जल कर राख हो गया.|
मुझे जबाब मिल चुका था की बलि से माता खुश नहीं बल्कि नाराज हो जाती है.| जय हो माँ दुर्गे की |